उनसे कुछ कहा ना गया जब क़यामत आई थी
लो अंजाम फिर ये हो चला,हम पे शामत आई थी
भीगे पलकों से उन्होने बस देखना ही मुनासिब समझा
उनके होठों के सिल जाने पर हम पे आफ़त आई थी
अपनी दलीलें,अपनी वफ़ा, अपनी नीयत ,अपना करम
एक तरफ़ा इरादों पे मुझ पे लानत आई थी
उनके नम निगाहों से बहती वो गुज़ारिश
मेरी वफ़ा के लिए बेवफ़ाई की ज़मानत आई थी
आशिक़ परस्त मिजाज़ को जब उन्होने परखा
जज़्बातों की इस दिल पे शिकस्त आई थी
रक़ीब से आशना हुए और इजात-ए-क़त्ल मुकम्मिल किया
क्या खूब मेरे माशूक़ को मुझपे उल्फ़त आई थी
की उस घर में अकेले रिंद बन गये हम
या अल्लाह मेरे कर्मों की मुझपे मिल्कियत आई थी
तिश्नगी की आँसुओं का बाज़ार में ये दाम हो चला था
की लोगों ने ईट बरसाए थे ये कह के की दहशत आई थी
उनसे कुछ कहा ना गया जब क़यामत आई थी
लो अंजाम फिर ये हो चला,हम पे शामत आई थी
~~~~~ तिश्नगी~~~~~
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