Friday, July 12, 2013

khushhaam-e-deed!!!!!


वाह रे तेरी तबीयत
वाह रे तेरी वफ़ाई
खुशहां-ए-दीद तन्हाई तन्हाई

कहते थे रह ना सकेंगे जो हुए जुदा तुमसे
कभी रिश्ता ना जोड़ना तुम हमारा गम से
अब हमे ही छोड़ कर हम पर गम निसार कर गये
और आज भी ये कहते हैं की वो हमसे प्यार कर गये
अब मुस्कुराऊं तेरी जफ़ा पे
की आँसू बहाऊं तेरी वफ़ा पे
वाह रे तेरी तबीयत
वाह रे तेरी वफ़ाई
खुशहां-ए-दीद तन्हाई तन्हाई

जब तक ज़िंदगी है साथी तुम ही हो
हर मंज़िल का कहते थे राही तुम ही हो
मंज़िल से जब नज़दीक हुए
हमसे जाने क्यूँ संग दिल हुए
अपनी ख़ुदग़रज़ी का हम पे रहम जता गये
जाते वखत भी अपना हम पे अहम जता गये
वाह रे तेरी तबीयत
वाह रे तेरी वफ़ाई
खुशहां-ए-दीद तन्हाई तन्हाई

वो बिस्तर की सिलवटों पे कर्वटो का रुबाब
आफरीं इश्क़ पे रूहानियत का सबाब
जाने क्यूँ आज भी है हुमको तुम्हारा इज्तिराब(प्यास)
की वो आएँगे इक दिन लेकर सुकून-ओ-ताब(लाइट)
कभी तो होगी ना
मेरे इश्क़ की सुनवाई
तेरी तबीयत .....
तेरी वफ़ाई.....
खुशहां-ए-दीद तन्हाई तन्हाई!!!!!

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