निकल ही आएँगे तेरे गम से हम
तेरी रूहानी वफ़ा के भरम से हम
जो रूह को तीर-ए-नश्तर से खून खून कर गया
ताज़ा रखेंगे उन ज़ख़्मों को अपनी करम से हम
माना की तुझे ज़ैब नही
अल्लाह की फ़ज़ल से कोई खैर नही
नज़ार-ए-दीदा जो हुआ तेरा ए पारीज़ाद
अश्कों को भर लेंगे निगाहों के शरम से हम
ताज़ा रखेंगे उन ज़ख़्मों को अपनी करम से हम
तू वफ़ा कर ज़माने से मेरी वफ़ा को ज़लील कर के
अपनी बेवफ़ाई को फिर वजा फरमा मेरे रूबरू दलील करके
ज़ब्त-ए-गम-ए-आईना है, तू किसी और से आशना है
खुशफहमी में जी लेंगे तेरे वहम से हम
तेरी रूहानी वफ़ा के भरम से हम
मंज़िल से रूस्वाह हुए तो राह किनारा कर गयी
हौसला बाँधे कदमों को उठाया तो वो मुह दोबारा कर गयी
बेखुदी बेसबब नही , बहाराँ हैं सोज़-ए-नुमाइश-ए-गम
ताज़ा रखेंगे उन ज़ख़्मों को अपनी करम से हम
रोशनी बेपरवाह हुई,शम्मा ने घर जला दिया
लौ की गुज़ारिश ने तन्हाई को पनाह दिया
लो अब ये हुआ की तौबा कर बैठे दायर-ओ-धरम से हम
पर निजात कहाँ पाते अपनी वफ़ा के करम से हम
फिर भी कहते हैं तिश्नगि
निकल ही आएँगे तेरे गम से हम
तेरी रूहानी वफ़ा के भरम से हम
~~~~Magnolia~~~~~