Thursday, May 23, 2013

~~~~~Nijaat~~~~~


निकल  ही आएँगे तेरे गम से हम
तेरी रूहानी वफ़ा के भरम से हम
जो रूह को तीर-ए-नश्तर से खून खून कर गया
ताज़ा रखेंगे उन ज़ख़्मों को अपनी करम से हम


माना की तुझे ज़ैब नही
अल्लाह की फ़ज़ल से कोई खैर नही
नज़ार-ए-दीदा जो हुआ तेरा ए पारीज़ाद
अश्कों को भर लेंगे निगाहों के शरम से हम
ताज़ा रखेंगे उन ज़ख़्मों को अपनी करम से हम

तू वफ़ा कर ज़माने से मेरी वफ़ा को ज़लील कर के
अपनी बेवफ़ाई को फिर वजा फरमा मेरे रूबरू दलील करके
ज़ब्त-ए-गम-ए-आईना है, तू किसी और से आशना है
खुशफहमी में जी लेंगे तेरे वहम से हम
तेरी रूहानी वफ़ा के भरम से हम

मंज़िल से रूस्वाह हुए तो राह किनारा कर गयी
हौसला बाँधे कदमों को उठाया तो वो मुह दोबारा कर गयी
बेखुदी बेसबब नही , बहाराँ हैं सोज़-ए-नुमाइश-ए-गम
ताज़ा रखेंगे उन ज़ख़्मों को अपनी करम से हम

रोशनी बेपरवाह हुई,शम्मा ने घर जला दिया
लौ की गुज़ारिश ने तन्हाई को पनाह दिया
लो अब ये हुआ की तौबा कर बैठे दायर-ओ-धरम से हम
पर निजात कहाँ पाते अपनी वफ़ा के करम से हम
फिर भी कहते हैं तिश्नगि
निकल ही आएँगे तेरे गम से हम
तेरी रूहानी वफ़ा के भरम से हम

~~~~Magnolia~~~~~

Wednesday, May 22, 2013

~~~~~MAQBOOL~~~~~



मोहब्बत बेमुकम्मिल रह गयी
तन्हाई मुनासिब रह गयी
फसाना-ए-गम क़ुबूल हो गया
ज़माना मक़बूल हो गया

किस किफायत से नापे हम 
इस तन्हाई की उम्र को 
किस इनायत को पेश करें
अपने मुकम्मिल हिज्र को
हमारी दीवानगी को देख 
शिकस्ती का ज़माने को इल्म हो गया
हमे फसाना-ए-गम क़ुबूल हो गया 
ज़माना मक़बूल हो गया

इंसान की शक्सियत एक चकनाचूर आईना है
दरार ही दरार हैं, वफ़ा का ये माइना है
अब क्या करें जो दिल के शीश-महल में
वो पैकर दर्ज रह गयी
हमे तो उन्होने निकाल बाहर किया 
और खुद दिल के पुरज़ो में क़ैद रह गयी
हमारी मोहब्बत बेमुकम्मिल रह गयी 
तन्हाई मुनासिब रह गयी

बेवफ़ाई की और जफ़ा भी कर गये
नुकसान कर के मेरा कहते हैं ऩफा कर गये
जब जी चाहा मूह उठाए चले आए
जब जी चाहा अपनी ज़िंदगी से हमें दफ़हा कर गये
हमे अपनी महफ़िलों से रूस्वाह कर के
खुद वो किसी और की महफ़िलों में शामिल रह गयी
हमारे लिए तन्हाई मुनासिब रह गयी
मोहब्बत बेमुकम्मिल रह गयी
फसाना-ए-गम क़ुबूल हो गया
ज़ुल्मत-ए-ज़माना मक़बूल हो गया

~~~~~Magnolia~~~~~