Monday, June 10, 2013

QAYAMAT

उनसे कुछ कहा ना गया जब क़यामत आई थी
लो अंजाम फिर ये हो चला,हम पे शामत आई थी

भीगे पलकों से उन्होने बस देखना ही मुनासिब समझा
उनके होठों के सिल जाने पर हम पे आफ़त आई थी

अपनी दलीलें,अपनी वफ़ा, अपनी नीयत ,अपना करम
एक तरफ़ा इरादों पे मुझ पे लानत आई थी

उनके नम निगाहों से बहती वो गुज़ारिश
मेरी वफ़ा के लिए बेवफ़ाई की ज़मानत आई थी

आशिक़ परस्त मिजाज़ को जब उन्होने परखा
जज़्बातों की इस दिल पे शिकस्त आई थी

रक़ीब से आशना हुए और इजात--क़त्ल मुकम्मिल किया
क्या खूब मेरे माशूक़ को मुझपे उल्फ़त आई थी

की उस घर में अकेले रिंद बन गये हम
या अल्लाह मेरे कर्मों की मुझपे मिल्कियत आई थी

तिश्नगी की आँसुओं का बाज़ार में ये दाम हो चला था
की लोगों ने ईट बरसाए थे ये कह के की दहशत आई थी

उनसे कुछ कहा ना गया जब क़यामत आई थी
लो अंजाम फिर ये हो चला,हम पे शामत आई थी

~~~~~ तिश्नगी~~~~~

Thursday, June 6, 2013

Ae pardanasheen chaand


रातों को ह्म भटकते हैं, नूर की तलाश में
वो आसमान का चाँद तो, कहकशां सितारों को बाँटता है

माना की ह्म वो अफ्सुर्दा नही
पर उस चाँद की हसरत का हमसे कोई परदा नही

फिर भी वो परदा नशीन बनता है हमसे
इस ज़माने की लुत्फ़ उठाने
पर जिस ज़माने की वो सोचता है
उसको अपने सिवा किसी और का कोई जज़्बा नही
आपने चाँद की हसरत का हमसे कोई परदा नही

रातों को ह्म भटकते हैं, नूर की तलाश में
वो आसमान का चाँद तो, कहकशां सितारों को बाँटता है