मोहब्बत बेमुकम्मिल रह गयी
तन्हाई मुनासिब रह गयी
फसाना-ए-गम क़ुबूल हो गया
ज़माना मक़बूल हो गया
किस किफायत से नापे हम
इस तन्हाई की उम्र को
किस इनायत को पेश करें
अपने मुकम्मिल हिज्र को
हमारी दीवानगी को देख
शिकस्ती का ज़माने को इल्म हो गया
हमे फसाना-ए-गम क़ुबूल हो गया
ज़माना मक़बूल हो गया
इंसान की शक्सियत एक चकनाचूर आईना है
दरार ही दरार हैं, वफ़ा का ये माइना है
अब क्या करें जो दिल के शीश-महल में
वो पैकर दर्ज रह गयी
हमे तो उन्होने निकाल बाहर किया
और खुद दिल के पुरज़ो में क़ैद रह गयी
हमारी मोहब्बत बेमुकम्मिल रह गयी
तन्हाई मुनासिब रह गयी
बेवफ़ाई की और जफ़ा भी कर गये
नुकसान कर के मेरा कहते हैं ऩफा कर गये
जब जी चाहा मूह उठाए चले आए
जब जी चाहा अपनी ज़िंदगी से हमें दफ़हा कर गये
हमे अपनी महफ़िलों से रूस्वाह कर के
खुद वो किसी और की महफ़िलों में शामिल रह गयी
हमारे लिए तन्हाई मुनासिब रह गयी
मोहब्बत बेमुकम्मिल रह गयी
फसाना-ए-गम क़ुबूल हो गया
ज़ुल्मत-ए-ज़माना मक़बूल हो गया
~~~~~Magnolia~~~~~
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